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Jabalpur:Criminals को बचाने में जुटी session judge Urmila Yadav!

 न्याय का गला घोटा जाता है कोर्ट में कुछ judges द्वारा, 

जनता को गोल गोल घुमाओ , इन जैसे के कारण हाई कोर्ट मे case बढ़ रहें है।

इनकी भी association है तभी इनपर कार्यवाही नहीं होती....

DISMISSED CRIMINAL REVISION FOR 80 DAYS DELAY, NO RELIEF FOR 76 AGE MOTHER SICKNESS REASON 

SHE MAY NOT WANT TO TAKE ACTION AGAINST ICSE BOARD SCHOOL FRAUD FIR UNDER CRPC 397....

INJUSTICE ANYWHERE MEANS INJUSTICE EVERY WHERE...


Jabalpur: Session Judge Urmila Yadav ने क्रिमिनल रिवीजन फाइल  करने में 80 दिन की देर करने पर याचिका खारिज कर दी। उनको बताया गया की मां की तबियत खराब रहती है इस पर hearing में details नही मांगी और बाद मे खारिज कर दिया।  

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने कई बार delay माफ करने को कहा है , क्यूंकि ये न्याय कर लिए जरूरी है। जज urmila Yadav को लगता है 76, age की महिला स्वस्थ होगी और applicant झूठ बोल रहा है।

यह case बड़े स्कूल के fraud के ऊपर था इसलिए बहाना बनाकर ख़ारिज कर दिया जिससे याचिकाकर्ता हाई कोर्ट के चक्कर लगाए। सेशन जज नियम कानून सब जानते है पर जानबूझ कर न्याय नही करना चाहते। जबलपुर जिला कोर्ट मे कुछ सेशन जज और jmfc अपने नियम से चलते है। वे किसी सुप्रीम कोर्ट का आदेश नही मानते न ही हाई कोर्ट का और सिर्फ अमीरों की गुलामी करते है। जनता को बेवकूफ समझना ये उनकी गलतफहमी है। पैसा सुविधा जनता से लेंगे पर न्याय नहीं करेंगे।

एक हाईकोर्ट कहता है जन विरोधी काम करने वाले judicial officer anti-national होते है।

जबलपुर के session judge Umesh Kumar Soni और preeti Shukla jmfc बोलती है एफआईआर करने हाई कोर्ट जाओ , हम CRPC 156 में आदेश नही करेंगे क्योंकि आरोपी बड़े HOSPITAL वाले थे। बाद में दोनों पर सुप्रीम कोर्ट में CONTEMPT CASE डाल दिया सपन श्रीवास्तव ने  । ऐसे भ्रष्ट PUBLIC SERVANTS को KK DHAWAN अनुसार COMPULSARY RETIREMENT पब्लिक INTEREST मे कर देना चाहिए।


आदेश की कॉपी :

न्यायालय अष्टम अपर सत्र न्यायाधीश जबलपुर म.प्र

 पुनरीक्षण क्रं.04/2023 

फाईलिंग नं.358/2023 सी.एन.आर.नं.एम.पी.20010006252023 फाईलिंग 

दिनांक04.01.2023 

सपन श्रीवास्तव उम्र 46 वर्ष डी.102 नटराज दर्शन गणेश नगर चौक डोंबीबली वेस्ट थाणे महाराष्ट््र.........पुनरीक्षणकर्ता 

विरूद्ध 

1. श्रीमती माला बैनर्जी उम्र 50 वर्ष    निवासी शान्तिनगर दमोहनाका जबलपुर 2. डा. अगस्तीन पिन्टो उम्र 60 वर्ष     निवासी शान्तिनगर दमोहनाका जबलपुर 3. डा. जी इमानुअल  उम्र 60 वर्ष     निवासी पुष्पबिहार साकेत नई दिल्ली   


 ..........प्रत्यर्थीगण 01.03.2023 पुनरीक्षणकर्ता स्वयं व्ही.सी. के माध्यम से उपस्थित। राज्य द्वारा श्रीमती ज्योति राय एपीपी। प्रकरण आदेश हेतु नियत है। पुनरीक्षणकर्ता द्वारा न्यायायल कुंवर युवराज सिंह न्यायिक मजिस्ट्र्ेट प्रथम श्रेणी जबलपुर द्वारा अनरजिस्टर्ड प्रकरण क्रं. 1447/2021 सपन श्रीवास्तव बनाम श्रीमती माला बनर्जी एवं अन्य में पारित आदेश दिनांक 17.05.2022 जिसके द्वारा विचारण न्यायालय द्वारा पुनरीक्षणकर्ता की ओर से प्रस्तुत धारा 156 (3) का आवेदन पत्र निरस्त किया गया है, से व्यथित होकर प्रस्तुत की गई है। पुनरीक्षण याचिका के साथ पुनरीक्षण कर्ता द्वारा विलंब क्षमा किए जाने हेतु आवेदन पत्र भी प्रस्तुत किया गया है। पुनरीक्षणकर्ता द्वारा विलंब क्षमा किए जाने के आवेदन पर विलंब का कारण 76 वर्षीय के मां के बीमार होने के कारण 80 दिन के विलंब को क्षमा किए जाने का निवेदन किया गया है तथा अपने तर्क में भी यह व्यक्त किया गया है कि उनकी माताजी की तबियत खराब होने के कारण उनके द्व ारा विलंब से पुनरीक्षण याचिका प्रस्तुत की गई है। उक्त विलंब को क्षमा किया जाए। पुनरीक्षण याचिका के साथ संलग्न न्यायिक मजिस्ट्र्ेट के आदेश के अवलोकन से स्पष्ट है कि अनरजिस्टर प्रकरण क्रं. 1447/2021 में दिनांक 17.5.2022 को आदेश पारित करते हुए धारा 156 (3) दप्रसं का आवेदन पत्र निरस्त किया गया है तथा पुनरीक्षणकर्ता को यह स्वतंत्रता दी गई है कि वह परिवाद पत्र फाईल कर सकता है। पुनरीक्षणकर्ता  दिनांक 11.07.2022 को व्ही.सी के माध्यम से उपस्थित होकर धारा 200 दप्रसं. के अंतर्गत कार्यवाही न करना व्यक्त किया है। जिस कारण से प्रकरण आदेश दिनांक 11.07.2022 के माध्यम से अभिलेखागार भेज दिया गया है। परिसीमा अधिनियम 1963 के अनुच्छेद 131 के अनुसार पुनरीक्षण आदेश पारित होने की तारीख से 90 दिवस के अंदर प्रस्तुत किया जाना चाहिए था किन्तु पुनरीक्षणकर्ता द्वारा दिनांक 04.01.2023 को ई फाईलिंग के माध्यम से प्रस्तुत की है तथा म.प्र. के अधीनस्थ न्यायालयों के इलेक्ट््रानिक फाईलिंग के नियम 2020 के नियम 17 (3) के अन्तर्गत ई फाईलिंग के सात दिन के भीतर हार्ड कापी प्रस्तुत की जानी चाहिए थी। किन्तु पुनरीक्षणकर्ता द्वारा उक्त नियम का पालन भी नहीं किया गया है। पुनरीक्षणकर्ता द्वारा आदेश पारित होने के 90 दिन तक पुनरीक्षण याचिका प्रस्तुत नहीं की गई है बल्कि 80 दिन विलम्ब से पुनरीक्षण याचिका प्रस्तुत करने का कारण अपने आवेदन में 76 वर्षीय मां का स्वास्थ्य खराब होना व्यक्त किया है, किन्तु मां को कौन सी बीमारी थी और मां का इलाज किस डाक्टर से और कहां चला इस सम्बन्ध में कोई भी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए है। जिससे यह तथ्य विश्वसनीय प्रतीत नहीं होता है कि पुनरीक्षणकर्ता द्वारा मां का स्वास्थ्य खराब होने के कारण पुनरीक्षण याचिका प्रस्तुत करने में विलम्ब हुआ है। इस स्थिति में पुनरीक्षणकर्ता द्वारा पुनरीक्षण याचिका विलम्ब से पेश किए जाने का कारण भी  सदभाविक प्रतीत नहीं होता है। अतः पुनरीक्षणकर्ता द्वारा प्रस्तुत पुनरीक्षणयाचिका परिसीमा अवधि के बाहर प्रस्तुत होने के कारण प्रचलनशील न होने से निरस्त की जाती है। आदेश की प्रति विचारण न्यायालय को भेजी जाए। प्रकरण का परिणाम दर्ज कर अभिलेखागार भेजा जाए।


 कुमारी उर्मिला यादव    08वें अपर सत्र न्यायाधीश,  जबलपुर



CITATIONS TO CONDONE DELAY

Timebarred Revisions & Condonation of Delay: According to Article 131 of the Limitation Act, 1963, the limitation period for filing revision u/s. 397 CrPC is 90 days from the date of order under challenge. Revisional court can condone the delay u/s 5 of the Limitation Act, 1963 if the delay is satisfactorily explained by the proposed revisionist. If the revisionist was not having knowledge of the order then the l imitation period of 90 days to prefer revision would be computed from the date of knowledge of the order. In the cases, noted below, it has been held that a 

criminal revision cannot be dismissed on a technical ground like limitation otherwise if the order passed by the lower court is otherwise illegal, that illegality will perpetuate and survive if the power of revision is not exercised by the revisional court for the technical reasons like limitation. The revisional court should apply liberal approach while considering the question of limitation in regard to a time barred criminal revision. See:  1. Shilpa vs. Madhukar & others, 2001 (1) JIC 588 (SC) 2. State of U.P. vs. Gauri Shanker, 1992 ALJ 606 (All—D.B.) 3. Paras Nath vs. State of U.P., 1982 ALJ 392 (All) 4. Municipal Corporation of Delhi vs. Girdharilal Sapuru, AIR 1981 SC 1169  9.2.  Explanation for day to day delay not required: While considering the question of condonation of delay u/s 5 of the Limitation Act, 1963, the court is not required to adopt a hyper technical or pedantic approach. It should rather adopt a liberal approach and every day’s delay should not be expected to be explained. If the party is expected to explain the delay for every day then why not the delay for every hour, every minute and every second. Substantial justice should be preferred over technical justice.   

See:  1. Sainik Security vs. Sheel Bai, 2008 (71) ALR 302 (SC)

 2 State of Nagaland vs Lipok AO, 2005 (52) ACC 788 (SC) 

3. Balkrishnan vs. M. Krishnamurthy, AIR 1998 SC 3222 

4. State of Haryana vs. Chandra Mani, 1996 (3) SCC 132

 5. Spl. Tehsildar vs. K.V. Ayisumma, AIR 1996 SC 2750 

6. G. Ramagowda Major vs. The Special L.A.O. Bangalore, AIR 1988 SC 897 

7. Collector L.A. Anentnag vs. Smt. Kitiji, AIR 1987 SC 1353  

8. O.P. Kathpalia vs. Lakhmir Singh, 1984 (4) SCC 66  


  Relevant considerations for condoning delay: In the matter of condonation of delay in filing Criminal Revision u/s 397/401Cr PC, it has been held by the Supreme Court that the proof of sufficient cause is a condition precedent for exercise of the extraordinary discretion vested in the Court. What counts is not the length of the delay but the sufficiency of the cause and shortness of the delay is one of the circumstances to be taken into account in using the discretion. The expression sufficient cause u/s 5 of the Limitation Act, 1963 should receive liberal construction. See: State (NCT of Delhi) Vs. Ahmed Jaan, 2009 (64) ACC 571 (SC) 


 "Sufficient Cause" shown by revisionist explaining the delay should be given liberal interpretation : The expression "sufficient cause" appearing in Section 5 of the Limitation Act, 1963 as shown by the revisionist in explaining the delay behind not filing the revision within the period of limitation should be given a libera l interpretation. "Sufficient cause" is the cause for which the revisionist cannot be blamed for his absence or inaction or cause for which party cannot be said to have not acted diligently or remained inactive.  See : Shri Basawaraj Vs. The Special Land A 9 .5. cquisition Officer, AIR 2014 SC 746. 15 months delay in filing revision condoned : where the criminal revision filed by the accused/revisionist after a delay of 15 months after his conviction u/s 452 of the IPC was dismissed by the Hon'ble Patna High Court, the Hon'ble Supreme Court set aside the order of the Hon'ble High Court by holding that the bar of limitation could not have been mechanically applied by the High Court particularly when the convict/revisionist had explained that he was caught in v ortex of earning daily bread and the delay was held liable to be condoned.  See: Ghafoor & another Vs. State of Bihar, AIR 2012 SC 640.


Above said judgment of Hon’ble High Court in Sunil Goyal Vs. Additional District Judge,2011(2) I.L.R. (Raj.) 530 is upheld by Supreme Court in Smt. Prabha Sharma Vs. Sunil Goyal (2017) 11 SCC 77, where it is ruled as under;

Article 141 of the Constitution of India - disciplinary proceedings against Additional District Judge for not following the Judgments of the High Court and Supreme Court - judicial officers are bound to follow the Judgments of the High Court and also the binding nature of the Judgments of this Court in terms of Article 141 of the Constitution of India. We make it clear that the High Court is at liberty to proceed with the disciplinary proceedings and arrive at an independent decision.


IN THE SUPREME COURT OF INDIA CIVIL APPELLATE JURISDICTION CIVIL APPEAL NO.8950 OF 2011 KRISHNA PRASAD VERMA (D) THR. LRS. APPELLANT(S) VERSUS STATE OF BIHAR & ORS. RESPONDENT(S) September 26, 2019

2.Most litigants only come in contact with the District judiciary. They cannot afford to come to the High Court or the Supreme Court. For them the last word is the word of the Magistrate or at best the Sessions Judge. Therefore, it is equally important, if not more important, that the judiciary at the District Level and at the Taluka level is absolutely honest, fearless and free from any pressure and is able to decide cases only on the basis of the facts on file, uninfluenced by any pressure from any quarters whatsoever.

CNR NumberMP20010006252023
Case Type/Number/YearCRR/4/2023
Filing | Registration Date04-01-2023 | 04-01-2023
StatusDisposed
Date of Decision01-03-2023
Nature of DisposalOrder Passed, Rejected
Pending
First Date List04-01-2023
Next Listed Date01-03-2023
Stage of CaseMiscellanceous matters not defined otherwise
Court No. & Judge11 - VIII Additional District and Session Judge - Urmila Yadav
Petitioner1.)Sapan Shrivastava
Respondent1.)Mala Banerjee
2.) DR AUGUSTINE F PINTO
3.) DR. G. IMMANUEL
4.) STATE THROUGH SHO GOHALPUR
5.) Dr. Augustine F Pinto
6.) Dr. Augustine F Pinto
7.) Dr. G. Immanuel
8.) Dr. Augustine F Pinto
9.) Dr. G. Immanuel
10.) State

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