MP MAGISTRATE REJECTED MONITOR OF INVESTIGATION IN E FIR AS E FIR IS NOT UNDER CRPC 154. ONLY PAPER FIR IS VALID UNDER LAW. SECTION 4 OF IT ACT 2000 GIVE RECOGNITION TO ALL ELECTRONIC DOCUMENTS.
Sehore:Budhni मजिस्ट्रेट का कहना है कि ऑनलाइन E FIR CrPC 154 की परिभाषा में नहीं आती। मजिस्ट्रेट राजेश श्रीवास्तव के यहां crpc 156 में E-FIR की जांच मैजिस्ट्रेट की निगरानी में करने के लिए पिटीशन दायर हुई। दो बार बहस हुई पर मजिस्ट्रेट साहब ने कुछ नही पूछा। बाद में ऑर्डर पारित कर खारिज कर दिया की E FIR CrPC 154(1) की परिभाषा मे नही आती इसलिए हम निगरानी नही कर सकते।
इसका मतलब E ticket , E case filing , E business, E mail सब गैर कानूनी है। Delhi High court E FIR को crpc 482 में quash करता है और यह सब गैर कानूनी है। याचिका में Delhi High court का आर्डर भी लगा था पर उसको नहीं देखा। लगता है मजिस्ट्रेट साहब ने IT ACT 2000 नही पढ़ा साथ में EVIDENCE ACT AMENDMENT भी नही पढ़ा कॉलेज में। MP में मजिस्ट्रेट लोगों को whimsical order पास करके पिंड छुड़ाने की जल्दी रहती है बाकी सेशन जज दिमाग लगाए।
सिर्फ सरकारी सुविधा का लाभ उठाओ और दिमाग ऊपर के जज लगाए । Jmfc बहस से भागते है और objection नही करते बहस मे । तभी हाई कोर्ट और सेशन कोर्ट मे केस बढ़ रहे है और मजिस्ट्रेट गैर ज़िम्मेदार निर्णय दे रहे है क्योंकि हाई कोर्टभी शिकायत पर कार्यवाही नही करता।
आजकल पुलिस भी FIR CCTNS की वेबसाइट में ऑनलाइन भर्ती है न की किसी रजिस्टर मे, फिर यह भी अवैध है।
CNR Number | MP37050015372022 |
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Case Type/Number/Year | UN CR/6/2022 |
Filing | Registration Date | 03-11-2022 | 28-11-2022 |
Status | Disposed |
Date of Decision | 28-11-2022 |
Nature of Disposal | Dismissed as Satisfied |
Pending | |
First Date List | 28-11-2022 |
Next Listed Date | 28-11-2022 |
Stage of Case | Miscellanceous matters not defined otherwise |
Court No. & Judge | 1 - Civil Judge Class-I - Shri Arvind Shrivastava |
Petitioner |
1.)SAPAN SHRIVASTAVA |
Respondent |
1.)SHO BUDHNI 2.) STATE THROUGH SP |
परिवादी श्री सपन श्रीवास्तव।
प्रकरण परिवादी द्वारा प्रस्तुत आवेदन अंतर्गत धारा
156(3) दडं प्रक्रिया संहिता पर आदेश हते ु नियत है।
इसी प्रक्रम पर श्री सपन श्रीवास्तव द्वारा ई-मेल के माध्यम से एक पत्र इस आशय का भेजा है कि विरोधी पक्षकार द्वारा प्रस्तुत तर्क के संबंध में उसे सुना जाये एवं यदि उनके द्वारा परिवादी के परिवाद का विरोध किया गया है तो उन्हें उसकी एक प्रति उसे भेजे जाने के लिये निर्देशित करने का निवेदन किया है। एवं आज पुनःव्ही.सी. के माध्यम से उपस्थित होने का निवेदन किया है। परिवादी द्वारा उक्त आवेदन 156(3) दंड प्रकिया संहिता के अंतर्गत प्रस्तुत किया है अतः इस स्तर पर प्रत्यर्थी को सुना जाना आवश्यक नहीं है। परंतु परिवादी को व्ही.सी. के माध्यम से जोड़े जाने का निवेदन स्वीकार किया जाता हैं। प्रकरण आदेश हेतु नियत है।
प्रकरण के अवलोकन से दर्शित है कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत आवेदन थाना प्रभारी बुदनी एवं मध्यप्रदेश राज्य द्वारा पुलिस अधीक्षक के विरूद्ध प्रस्तुत किया है।
आवेदन का अवलोकन किया गया जो संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी द्वारा दिनांक 15.10.2022 को संज्ञेय अपराध की ई-एफआईआर 921348010220005 अंतर्गत धारा 154 दंड प्रक्रिया के अंतर्गत दर्ज की गई है। उक्त ई-एफआईआर भारतीय दडं संहिता की धारा 379, 413,
420, 34, 120 बी एवं माईन्स एंड मिनरल्स (डेवलेपमेंट रेगुलेशन) अधिनियम की धारा 21 के अंतर्गत माईनर मिनरल्स की लगभग 80,000/- रूपये की चोरी से संबंधित है। प्रत्यर्थी क्रमांक 01 द्वारा कोई अन्वेषण अधिकारी नियुक्त नहीं किया गया है और यह कहा गया है कि उसके द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट को निरस्त किया गया है और संज्ञेय अपराध में अभियुक्त के विरूद्ध अन्वेषण से मना किया गया है।
परिवादी द्वारा मुख्यतः यह आधार दिये गये है कि थाना प्रभारी पंजीबद्ध ई-एफआईआर में अन्वेषण अधिकारी नियुक्त न किये जाने से सह अभियुक्त है और उसे एफआईआर को निरस्त या क्वैश करने का दडं प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत क्षेत्राधिकार नहीं है। माननीय उǔच न्यायालय की खंडपीठ ग्वालियर द्वारा हैदर खान अब्बासी विरूद्ध मध्यप्रदेश राज्य एवं अन्य एम.सी.आर.सी. नंबर 63191/2021 में पारित आदेश अनुसार एफआईआर क्वैश करने का एक मात्र अधिकार माननीय उǔच न्यायालय को है।
थाना प्रभारी को धारा 468 एवं 469 दडं प्रक्रिया संहिता में दी गई परिसीमा के अंतर्गत रिपोर्ट प्रस्तुत करना आवश्यक है। परिवादी द्वारा विगत एक माह में अन्वेषण की कोई प्रगति नहीं की है। माननीय सर्वोǔच न्यायालय के आदेशानुसार मजिस्ट््रेट को धारा 156(3) दंड प्रकिया संहिता के अंतर्गत अन्वेषण को मॉनिटर करने की शक्ति प्राप्त है। परिवादी द्वारा उक्त आधारों पर यह प्रार्थना की है कि-
अ- मजिस्ट््रेट द्वारा अन्वेषण को मॉनिटर किया जाये एवं ई-एफआईआर दिनांक 15.10.2022 में अन्वेषण अधिकारी नियुक्त किये जाने हेतु पुलिस को निर्देशित किया जाये।
ब- पुलिस अधीक्षक को निर्देशित किया जावे कि वह अन्वेषण को क्राईम ब्रान्च को हस्तांतरित करे।
स- प्रस्तुत आवेदन का व्यय उसे दिलाया जावे।
परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र में माननीय न्यायदृष्टांत सकीरी वसु विरूद्ध उत्तरप्रदेश राज्य एवं अन्य
(2008) 2 एस.सी.सी. 409, सुनीता नेगी विरूद्ध देहली
राज्य एवं अन्य रिट पिटीशन (क्रिमिनल) 614/2021,
जनार्दन उपाध्याय विरूद्ध पंजाब राज्य एआईआर 2007 पी.एच. 86, बिहार राज्य विरूद्ध पी.पी. शर्मा एवं अन्य 1991 एआईआर 1260, दिलावर सिंह विरूद्ध स्टेट ऑफ देहली, बाबूभाई एवं अन्य विरूद्ध गुजरात राज्य, मोहम्मद अरशद विरूद्ध हरयाणा राज्य एवं अन्य में पारित निर्णयों का उल्लेख करते हुए तर्क किया है कि ई-एफआईआर धारा
154 के अंतर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट की परीधि में आती है एवं संज्ञेय अपराधों में पुलिस का यह दायित्व है कि वह उसमें विधिवत् अन्वेषण करें एवं मजिस्ट््रेट को संज्ञेय अपराधों के अन्वेषण को मॉनिटर करने की शक्ति प्राप्त है। बुदनी मंे 900 एकड़ में स्थित ट््राईडेंट कंपनी द्वारा स्पिनिंग मिल, हॉस्पिटल, पावर प्लान्ट्स, सड़क, आवासीय मकान और सिविल इंन्फ्रास्ट््रक्चर में विधि विरूद्ध रूप से खनिजों का दुरूपयोग किया गया है। कंपनी द्वारा विगत 10 वर्षो में लगभग 80,000/- रूपये के माईनर मिनरल्स की चोरी की है। उसके द्वारा सी.एम. हेल्प लाईन में शिकायत प्रस्तुत की गई थी परंतु आज दिनांक तक पुलिस द्वारा उक्त कंपनी के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गई है। थाना प्रभारी बुदनी को उसके द्वारा सिटीजन पोर्टल में दर्ज की गई ई-एफआईआर को बिना किसी क्षेत्राधिकार के निरस्त किया है। अतः उक्त ई-एफआईआर के संदर्भ में मुख्यतः अन्वेषण को मॉनिटर करने तथा पुलिस को उक्त ई-एफआईआर के मामले में अन्वेषण अधिकारी नियुक्त करने तथा पुलिस अधीक्षक को उक्त मामले का अन्वेषण क्राईम बं्राच को हस्तांतरित किये जाने के लिये निर्देशित करने का निवेदन किया है।
परिवादी को व्ही.सी. के माध्यम से सुना गया एवं प्रकरण का समग्र अवलोकन किया गया जिससे यह दर्शित है कि परिवादी श्री सपन श्रीवास्तव द्वारा दिनांक 15.10.2022 को मध्यप्रदेश पुलिस के पोर्टल पर ट््राईडंेट कंपनी द्वारा आधारभूत योजनाओं में खनिज संसाधनों का दुरूपयोग करने के संबंध में पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही न करने से व्यथित होकर यह परिवाद प्रस्तुत किया है। परिवादी ने अपने समर्थन में मध्यप्रदेश पुलिस के पोर्टल पर ई-एफआईआर की कॉपी, सी.एम. हेल्प लाईन में की गई शिकायत का स्टेटस की प्रति भी प्रस्तुत की है।
सी.एम. हेल्पलाईन में की गई शिकायत के स्टेटस के अवलोकन से यह दर्शित है कि उक्त शिकायत पर निराकरण अधिकारी द्वारा कार्यवाही की जा रही है। जहां तक परिवादी द्वारा इस न्यायालय से उक्त ई-एफआईआर के संबंध में अन्वेषण को मॉनिटर करने की प्रार्थना का प्रश्न है तो इस संबंध में यह उल्लेखनीय है कि स्वयं परिवादी द्वारा ही यह बताया गया है कि उसकी ई-एफआईआर को थाना प्रभारी द्वारा निरस्त किया गया है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत
माननीय न्यायदृष्टांतों में धारा 154 दडं प्रक्रिया संहिता के
अंतर्गत पंजीबद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट के पश्चात् मजिस्ट््रेट को संज्ञेय अपराधों में अन्वेषण किये जाने के संबंध में दिशा निर्देश दिये गये है। परिवादी के अनुसार उसके द्वारा पंजीबद्ध ई-एफआईआर धारा 154 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट की श्रेणी में आती है। इस संबंध में धारा 154(1) दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार-
‘‘संज्ञेय अपराध के किए जाने से संबंधित प्रत्येक इत्तिला, यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को मौखिक दी गई है तो उसके द्वारा या उसके निदेशाधीन लेखबद्ध कर ली जाएगी और इत्तिला देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी और प्रत्ये ऐसी इत्तिला पर, चाहे वह लिखित रूप में दी गई हो या पूर्वोक्त रूप में लेखबद्ध की गई हो, उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर किए जायेंगे जो उसे दे और उसका सार ऐसी पुस्तक में, जो उस अधिकारी द्वारा ऐसे रूप में रखी जायेगी जिसे राज्य सरकार इस निमित्त करे, प्रविष्ट किया जायेगा’’
परिवादी द्वारा प्रस्तुत उक्त ई-एफआईआर धारा 154 दडं प्रक्रिया संहिता के उक्त प्रावधान के आलोक मंे प्रथम सूचना रिपोर्ट की श्रेणी में आना दर्शित नहीं होता है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत माननीय न्यायदृष्टांतो की परिस्थितियां इस प्रकरण की परिस्थितियों से भिन्न है। प्रकरण के अवलोकन से दर्शित है कि प्रकरण में उक्त मामले में अभी कोई अपराध दर्ज नहीं किया गया है ऐसी स्थिति में अपराध के अन्वेषण को मॉनिटर किये जाने के पर्याप्त आधार न होने से परिवादी द्वारा प्रस्तुत आवेदन स्वीकार योग्य न होने से निरस्त किया जाता है। परिवादी न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर धारा 200 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत विधि अनुसार कार्यवाही करने हेतु स्वतंत्र है।
प्रकरण का परिणाम विहित पंजी में दर्ज कर सुसंगत अभिलेख समय सीमा में अभिलेखागार भेजा जावे।
अरविन्द श्रीवास्तव न्यायिक मजिस्ट््रेट प्रथम श्रेणी
बुदनी जिला सीहोर
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