INDIANS GETTING SALARY OF Rs25K ONLY
क़तर में क़रीब 30 लाख लोग रहते हैं. लेकिन इसमें केवल साढ़े तीन लाख या कुल आबादी का 10 फ़ीसदी ही क़तर के नागरिक हैं. बाकी विदेशी हैं.
क़तर में नागरिकों और पश्चिमी देशों के अप्रवासियों को ऊंची तनख़्वाहें और बेहतर सामाजिक सुरक्षा मुहैया है.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, क़तर ने ऊपरी तौर पर ग़रीबी को ख़त्म कर दिया है, हालांकि दक्षिणपूर्व एशिया से आए अधिकांश अप्रवासियों के लिए सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है.
एक ऐसे देश में जहां क़तर के नागरिक और विदेशी अप्रवासी एक साल में दसियों हज़ार डॉलर कमाने के साथ अन्य कई लाभ पाते हैं, वहीं अधिकांश अप्रशिक्षित कामगार न्यूनतम वेतन, महज 275 डॉलर प्रतिमाह (क़रीब 22377 रुपये) पर काम करते हैं.
क़तर, विवादित कफ़ाला प्रथा (प्रायोजित भर्ती) को 2020 में ख़त्म करने वाला अरब का पहला और कुवैत के बाद पूरे देश में एक समान न्यूनतम वेतन लागू करने वाला दूसरा देश बना.
जब कफ़ाला लागू था तब अगर कोई कर्मचारी बिना इजाज़त के अपनी नौकरी बदलता था, तो उसे आपराधिक मुक़दमे, गिरफ़्तारी और प्रत्यर्पण का सामना करना पड़ता था. नियोक्ता कभी-कभी उनके पासपोर्ट ज़ब्त कर लेते थे, जिससे मज़बूरी में उन्हें असीमित समय तक देश में रहना पड़ता था.
अधिकांश अप्रवासियों को नियुक्ति की फ़ीस के तौर पर भर्ती करने वाली एजेंसियों को 500 से 3,500 डॉलर (40 हज़ार से 2.84 लाख रुपये) देने पड़ते थे. इसके लिए उन्हें भारी ब्याज़ पर कर्ज़ लेने पड़ते थे, जिससे उनकी स्थिति और जटिल हो जाती थी.
श्रम क़ानूनों में सुधार के तहत ही क़तर ने क़ानून बनाकर उन कर्मचारियों को नौकरी बदलने की इजाज़त दी जो अपना कॉन्ट्रैक्ट पूरा कर चुके हैं और जो कंपनियां कर्मचारियों के पासपोर्ट ज़ब्त करती हैं, उन पर जुर्माने के भी प्रावधान किए गए.
लेकिन इन सुधारों के बावजूद ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे संगठनों का आरोप है कि अप्रवासी मज़दूर क़तर में प्रवेश पाने, रिहाइश पाने और नौकरी पाने के लिए अभी भी अपने नियोक्ताओं पर निर्भर हैं. इसका मतलब ये है कि कर्मचारियों की रिहाइश और वर्क परमिट के नवीनीकरण और रद्द करने का अधिकार अभी भी नियोक्ताओं के पास ही हैं.
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