Jabalpur: एक अगस्त 2022 को new life hospital jabalpur में आग लगी और 8 लोग जान से हाथ धो बैठे। इसके लिए प्रशासन के भ्रष्ट अधिकारी और पुलिस ही नहीं जिम्मेदार है, कोर्ट में बैठ मजिस्ट्रेट , session judge भी ज़िम्मेदार है। सुधा हॉस्पिटल की FIR के लिए सीआरपीसी 156 के तहत केस दायर किया गया और बिना FIRE NOC और OC के लाइसेंस दिए जाने के लिए IPC 420,336,215,166,120B,467 में कंप्लेंट फाइल किया गया। मजिस्ट्रेट preeti shikha Agnihotri ने याचिका खारिज कर दी और कहा FIR के लिए हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाओ। अपील करने पर सेशन जज उमेश कुमार सोनी जबलपुर ने कहा की मजिस्ट्रेट का आदेश सही है। सुप्रीम कोर्ट के ललिता कुमारी आदेश में COGNIZABLE OFFENCE में FIR MANDATORY है पर जबलपुर के ज्यूडिशियल ऑफिसर कहा सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानते है। अब मामला हाईकोर्ट में है और यह हादसा हो गया। किसी को कानून का भय नही। बड़े लोगो को पुलिस से लेकर कोर्ट का आशीर्वाद प्राप्त है। यही हाल TRIDENT BUDHNI COMPANY का है। प्लांट के गोदाम में आग लगी, कोई फायर एनओसी नही और OCCUPATION CERTIFICATE भी नही पर JMFC और सेशन जज ने FIR नही होने दी। अशोक नगर एचडीएफसी में आग लगी पर मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी 156 की याचिका खारिज कर दी क्योंकि AFFIDAVIT में फोटो नही है। कंप्लेंट ऑनलाइन E FILE किया गया था। गलत कारणों से कंप्लेंट ख़ारिज करना और बड़े लोगो को बचाना जिला अदालत में आम है। इंदौर में तो सीआरपीसी 156 केस को लंबी डेट देते है जो की 15दिन में आदेश पारित करना होता है। ILLEGAL MINING के लोगो को भी जिला अदालते सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ जाते है। ऐसे कई केस है जिनसे ये सिद्ध किया जा सकता है की जिला मैजिस्ट्रेट और जज सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ जाते है। कोर्ट में तथ्य आदेश में छिपाना, किसी को बचानेत के लिए उसके खिलाफ दस्तावेज ऑर्डर में नही लिखना आम बात है। जिला अदालतों से जायदा ईमानदारी आपको सरकारी कार्यालय में मिलेगी। आधिकारी सुप्रीम कोर्ट से डरते है पर ज्यूडिशियल ऑफिसर नहीं। लाखो सैलरी के बावजूद न्याय नही करते। हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाकर ही न्याय मिलता है, तब तक एक FIR दर्ज़ करने में साल निकल जाता है। अगर मैजिस्ट्रेट और पुलिस सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करे तो लोगों की जान बचाई जा सके। सुप्रीम कोर्ट में जब इनके खिलाफ contempt दायर होता है तो रजिस्ट्रार कोर्ट तक नही पहुंचने देता। स्पेशल पावर का use करके याचिका खारिज कर देता है की अपील में जाओ । यह करके judge को कंटेंप्ट से बचाता है। इसके बाद फिर MA लगानी पड़ती है।
JABALPUR HIGH COURT मे HOSPITAL के खिलाफ PIL लगाई की इसके पास फायर NOC नही है तो हाई कोर्ट कार्यवाही कर सकता था पर याचिका खारिज कर दी कहा DISTRICT JUDGE की कोर्ट में जाओ। हाई कोर्ट भी अगर कार्यवाही करता तो ये हादसा टाला जा सकता था , कोर्ट सबकी जांच करवा लेता और लोग नहीं मरते पर उसने भी कानूनी चाल में याचिका को उलझा दिया। इसमें हाई कोर्ट की कोई गलती नही है।
हादसे के बाद कोर्ट और प्रशासन ACTIVE हो जाते है बाद में यही उनको बचाते है। याचिका आने पर टरका देते है। SUPREME COURT के आदेशों को माने तो कानून का राज कायम हो सके पर ज्यूडिशियल ऑफिसर्स में APEX COURT का भय नही दिखता क्योंकि उनको बचाने वाले वहा बैठे है। कुछ ज्यूडिशियल ऑफिसर्स भी अच्छे है पर उनकी संख्या बहुत कम है ।
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