बाबरी मस्जिद कांड के बाद लोकप्रियता हासिल की मुस्लिम समाज में , मंत्री बनाने तक का सफर
1984 लोकसभा चुनाव की बात है. उत्तर पूर्व मुंबई की लोकसभा सीट से एक ओर कांग्रेस की ओर से गुरुदास कामत मैदान में थे और दूसरी तरफ़ भाजपा के प्रमोद महाजन थे.
इस चुनाव में गुरुदास कामत को दो लाख 73 हज़ार से ज़्यादा वोट मिले और उन्होंने करीब 95,000 वोटों से प्रमोद महाजन को हराया था.
उसी चुनाव में एक 25 साल का शख़्स भी चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहा था. वह उम्मीदवार तमाम कोशिशों के बाद भी किसी तरह 2620 वोट ही हासिल कर पाए थे.
लेकिन पिछले एक महीने से महाराष्ट्र की सियासत में इसी हारे हुए उम्मीदवार का दबदबा है. 25 साल के उस उम्मीदवार का नाम नवाब मलिक था.
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के हैं नवाब मलिक
नवाब मलिक का परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बलरामपुर ज़िले का रहने वाला है. उनके परिवार की अच्छी खेती बाड़ी और कारोबार था, परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था.
नवाब के जन्म से पहले उनके पिता, मोहम्मद इस्लाम मलिक मुंबई में बस गए थे. लेकिन पहले बच्चे के जन्म के लिए परिवार वापस उत्तर प्रदेश पहुंचा. नवाब का जन्म 20 जून 1959 को उत्तर प्रदेश के बलरामपुर के उतरौला तालुका के एक गाँव में हुआ था.
इसके कुछ समय बाद मलिक परिवार फिर मुंबई लौट आया. मलिक परिवार के मुंबई में छोटे और बड़े व्यवसाय थे. उनके पास एक होटल था. इसके अलावा उनके कबाड़ के कारोबार के साथ कुछ और छोटे मोटे काम धंधे थे.
मलिक ने बीजेपी की आलोचनाओं के जवाब में कहा, "हां, मैं कबाड़ीवाला हूं. मेरे पिता मुंबई में कपड़े और कबाड़ का कारोबार करते थे. विधायक बनने तक मैंने भी कबाड़ का कारोबार भी किया. मेरा परिवार अब भी करता है. मुझे इस पर गर्व है."
विरोध के कारण छोड़ा अंग्रेजी स्कूल
हिमांशी प्रोडक्शंस को दिए एक इंटरव्यू में नवाब मलिक ने अपने जीवन के बारे में कई बातें बताईं.
प्रारंभिक शिक्षा के लिए नवाब का दाख़िला सेंट जोसेफ़ इंग्लिश स्कूल में कराया गया. लेकिन पिता मोहम्मद इस्लाम के रिश्तेदारों और दोस्तों के विरोध के कारण वे इंग्लिश स्कूल में नहीं गए.
बाद में नवाब का दाख़िला एनएमसी के नूरबाग़ उर्दू स्कूल में भर्ती कराया गया. यहीं से उन्होंने चौथी कक्षा तक पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने डोंगरी के जीआर नंबर दो स्कूल में सातवीं कक्षा तक और सीएसटी क्षेत्र के अंजुमन इस्लाम स्कूल में 11वीं (तब मैट्रिक) तक पढ़ाई की.
मैट्रिक के बाद उन्होंने बुरहानी कॉलेज से 12वीं की पढ़ाई पूरी की. इसी कॉलेज में बीए में दाखिला भी लिया. लेकिन पारिवारिक कारणों से उन्होंने बीए फाइनल ईयर की परीक्षा नहीं दी.
1984 के लोकसभा चुनाव में नवाब मलिक ने संजय विचार मंच से चुनाव लड़ा था. लेकिन उनके पास एक राजनीतिक दल का दर्जा नहीं है, इसलिए इस चुनाव में उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार ही माना गया.
मलिक उस समय केवल 25 साल के थे और उस चुनाव में उन्हें केवल 2620 वोट मिले थे.
नवाब मलिक ने उस चुनावी अनुभव पर के बारे में बताया है, "मुझे थोड़े से वोट मिले थे. चुनाव लड़ने का फ़ैसला मैंने इसलिए लिया क्योंकि मैं उस समय राजनीतिक तौर पर अपरिपक्व था. लेकिन मुझे समझ आ गया कि अगर राजनीति में काम करना है, तो कांग्रेस पार्टी के अलावा कोई विकल्प नहीं है. "
मुंबई और आस पास के इलाकों में बाबरी मस्जिद की घटना के बाद समाजवादी पार्टी मुस्लिम मतदाताओं के बीच लोकप्रियता हासिल कर रही थी. इसी लहर में नवाब मलिक भी समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए.
1995 के विधानसभा चुनाव में उन्हें पार्टी से मुस्लिम बहुल नेहरू नगर निर्वाचन क्षेत्र से टिकट मिला.
उस वक्त शिवसेना के सूर्यकांत महादिक 51 हजार 569 वोट पाकर जीते थे. नवाब मलिक 37,511 वोट के साथ दूसरे नंबर पर रहे.
मलिक हार गए, लेकिन अगले ही साल विधानसभा पहुंच गए. धर्म के आधार पर वोट मांगने को लेकर विधायक महादिक के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर उन्हें दोषी पाया गया और चुनाव आयोग ने चुनाव रद्द कर दिया. इसलिए, 1996 में नेहरू नगर निर्वाचन क्षेत्र में फिर से चुनाव हुआ.
इस बार नवाब मलिक ने करीब साढ़े छह हज़ार मतों से जीत हासिल की.
2005-06 के दौरान मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की सरकार में मंत्री रहे नवाब मलिक को इस्तीफ़ा देना पड़ा था.
मलिक पर माहिम की जरीवाला चाल पुनर्विकास परियोजना में कदाचार के कई आरोप लगे थे. सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भी इस मामले को उठाया. फिर एक जांच शुरू की गई और नवाब मलिक को इस्तीफ़ा देना पड़ा. 12 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले पर फ़ैसला सुनाते हुए कहा था तत्कालीन राज्य मंत्री द्वारा लिया गया निर्णय उचित था.
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